Saturday 1 May 2010

मज़दूर

मजदूर क्यों अपना वक्त जाया करता है,
मात्र एक रोटी के लिए जीवन यापन करता है
क्यों नहीं तू भी कल्पना की चादर ओढ़ स्वप्न नगरी में जीवन व्यतीत करता है,
कम से कम रोटी को तो करीब पाएगा तेरा जीवन तो इसी में तर जाएगा

4 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने

    रोटी कमाना छोड़ यदि वो सो जायेगा
    तरेगा नहीं तो क्या हुआ कम से कम नींद में ही मर तो जायेगा

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  2. मजदूर और मानवीय दुखों को परिभाषित करती पोस्ट / उम्दा सोच /

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  3. aaditya ji bhavnayen sahi kah rahe ,aaj majdoor kal majdoor hamesha rahega majboor majdoor .

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