Monday 25 January 2010

संकीर्ण और संकुचित सोच

सम्मानीय प्रतिभा मौसीजी नमस्कार,
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

मौसीजी, रविवार को राज्य महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का विज्ञापन देखाबड़ा अफ़सोस हुआ, उसके बाद कई कार्यक्रम देखे व लेख पढ़े उससे जो पीड़ा मुझे हुई वो मै शब्दों से व्यक्त नही कर सकताआखिरकर मै हू तो वह ही आम इन्सान, जो पीड़ा की अग्नि में जीवन व्यतीत कर देता है पर उस अग्नि से क्रांति की मशाल नही जलाता है
हर व्यक्ति को इस विज्ञापन से केवल यही आपत्ति है की किसी पाकिस्तानी सैनिक की फोटो लगा दी
मेरे विचार से इस मे कृष्ण तीरथ की कोई गलती नही हैगलती उस कुर्सी की है जो रक्षक और भक्षक मे अंतर करना बंद कर देती हैयह भी हो सकता है की गूगल मे एंटर कर दिया होगा और उस मे इस पाकिस्तानी की भी फोटो आ गयी होगी, और उसे देखकर प्रसंचित हो गई होंगी की वहां ये फोटो लगाओ इतने तमगे लगे है - विज्ञापन और अच्छा लगेगा, फिर चाहें तमगे भारतीयों के रक्त बहाने के लिए ही क्यों ना मिले हो - चाहें इस से मेरी थल, जल और वायु सेना का अपमान ही हो
यदी ऐसा नही है तो फोटो लगी कैसे???
ये देशद्रोह हुआ कैसे???
मौसी कुछ तो बोलिये???
मौसी विज्ञापन के लिए
कृष्ण तीरथ ने कहा हम ने सिर्फ तस्वीर को देखा भाव को नही । जो दिखा व जो पढ़ा -वह ही तो समझेंगे उनके ह्रदय में तो नही झांक सकते मौसी, कृपया ये पंक्ति पढ़े और मुझ मुर्ख को समझाये की इसका क्या अर्थ है?

Where would you be

if your mother was

not allowed to be born???

इस में ये दर्शाया जा रहा है की महान पुरुष नही होते यदि माँ नही होती, इसलिए बालिका हत्या नही होनी चहिये ।इससे संकीर्ण और संकुचित सोच नही हो सकती

नारी रक्षा के लिए विज्ञापन देना ही था तो ये देते की बालिका हत्या नही होनी चहिये क्यों की नारी मात्र जननी नही है। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखते की बेटी अर्थात राष्ट्र का सम्मान कृष्ण तीरथ से पूछिए क्या भारत में महान व सफल नारी का अकाल पड़ा है जैसे अनाज का या सोच का अकाल है? इससे अच्छा तो इनकी तस्वीर लगात्ती

  • प्रतिभा पाटिल
  • इन्द्रा गाँधी
  • सरोजनी नायडू
  • विजय लक्ष्मी पंडित
  • सुचेता कृपलानी
  • मीरा कुमार
  • आरती शाह
  • कादम्बिनी गांगुली
  • चंद्रमुखी बासु
  • कामिनी रायसोराबजी
  • असीमा चटर्जी
  • कुमारी फातिमा बीवी
  • किरण बेदी
  • अन्ना चांदी
  • दुर्बा बनर्जी
  • कल्पना चावला
  • कम्लिजित संधू
  • बचेंद्री पाल
  • निरुपमा वैद्यनाथन
  • पी. टी. उषा
  • के. मल्लेश्वरी
  • कोनेरू हम्पी
  • सानिया मिर्ज़ा
  • सायना नेहवाल
ये कुछ नाम है जो मुझे याद है

आज भी लडकियों को पढाया नही जाता है और जिन्हे पढ़ाया जाता है उनमे से ९०% का लक्ष्य मात्र शादी होता है।आज भी लड़की को उसके वस्त्रो से चरित्र का आकलन होता है उस समाज में इस तरह का विज्ञापन किसी घोर अपराध से कम नही है इस तरह के विज्ञापन से यही सन्देश मिलेगा की नारी मात्र जननी है
मौसी
यह तो तब हो रहा है जब आप भारत की प्रथम नागरिक है कृपया कर के कुछ करिये ................

आप का
आदित्य


Saturday 23 January 2010

अभिव्यक्ति

जनता - "प्रजातंत्र, भाभी है?"
भाभी - "करुणा मैं रसोई मे हूँ ,आजाओ "
जनता - " भाभी, मैं करुणा नही जनता हूँ"
भाभी - "अरे जनता, आजा"
जनता - " क्या भाभी, जनता को भूल गयी"
भाभी - "कैसी बात करती हो, बस आज आवाज़ से धोखा हो गया, बिलकुल करुणा जैसी लगी"
जनता - "जनता से मिलेंगी नही, तो भूल ही जायेंगी ना"
भाभी - "जनता, अब सॉरी कहूं क्या"
जनता - "राम राम ,मै तू मजाक कर रही थी। वैसे ये सच है मेरी और करुणा की आवाज़ काफी मिलती है और आज कल तो पता ही नही चलता है जनता करुणा है या करुणा जनता है। भाभी कही ये मेरी जुड़वा बहेन तो नही?"
भाभी - "ही ही, तू भी कई बार फिल्मी हो जाती है"
जनता - "फिल्मी नही वास्तविक"
भाभी - "क्या"
जनता - "कुछ नही"
भाभी -" तेरी बाते मेरे सर के उपर से गुजरती है"
जनता - "कही, आप को नेताई फ्लू तो नही हो गया है ?"
भाभी- "पता नही, वैसे भी ये कह रहे थे ,आज कल कोई फ्लू चल रहा है ,शायद यही होगा"
जनता - "डॉक्टर को दिखा दीजिये नेताई फ्लू सब से खतरनाक फ्लू होता है, इस में जनता की आवाज़ नही सुनाई देती है"
भाभी - "डरा मत"
जनता - "डरा नही रही हू ,मेरी मानो आज छुटी है और प्रजातंत्र भी घर पे है, दिखा आइये"
भाभी- "तू सही कह रही है ,आज ही दिखाती हू कही मेरे कारण प्रजातंत्र को ना हो जाये"
जनता - "शुभ शुभ बोलिये"
भाभी - "जनता तू कितनी अच्छी है ,आ तुझे काला टीका लगा दूं"
जनता- "ही ही , मै तब तक अच्छी हूँ जब तक मेरा प्रजातंत्र बेटा स्वास्थ्य है,उसें काला टीका लगाइये"
भाभी - "जनता ये क्या हुआ तेरी आँख सूजी हुई है ? महंगाई ताई ने फिर मारा क्या?"
जनता- "भाभी छोडिये ना अब तो आदत हो गई है"
भाभी - "कैसी बात कर रही है महंगाई ताई ऐसे कैसे मार सकती है, ताऊजी (नेता) को क्यों नही बोलती है (महंगाई) सोतेली माँ मारती है"
जनता - "जब कहती हू की माँ ने मारा, तो गुस्सा हो जाते है और कहते है तू महंगाई की बुराई करती है। वो भी तेरी माँ है सोतेली है तो क्या हुआ अब तुझे महंगाई के संग रहना है। चाहें खुशी से रहो या रो के"
भाभी - "ऐसे घर कैसे चलेगा"
जनता - "आप घर की बात कर रही है यहाँ ज़िन्दगी चलनी दूभर हो गई है"

जनता - "अरे प्रजातंत्र धयान से, फ्रिज से टकरा के मत
गिरना, भाभी मैं चलती हू आप प्रजातंत्र को संभालिये"



चित्र www.google.com से लिया गया है

Monday 18 January 2010

डफर


पूज्नीय पापा/ मम्मी
मै ना अच्छी हू, ना मेहनती हू , मै सिर्फ मुर्ख पशु हू और ये मैंने भी आज मान लिया है
पापा सच कह रही हू मैंने अपने हिसाब से खूब मेहनत की पर क्या करू नंबर ही नही आते है
मुझे पता है मेरे कारण ११ साल से आपकी नाक कट रही है पर मै यकीन दिलाती हू की अब आप का अपमान नही होगाये छोड़ रही हू इसी आस से की शायद मरने के बाद मै आलसी जानवर से कम से कम कायर इन्सान ही कहलाऊंगी
पापा गुस्सा मत होईयेगा ये ख़त मैंने रात भर पढने के बाद ही लिखा है - सच्ची, मम्मी कसम. चाहें तो आप बुक्स देख लीजियेगा मैंने स्कूल, टयूशन, टेस्ट पेपर, आप का और मम्मी का सारा काम कर लिया है
मम्मी परसों के लिए - सॉरी - मेरे हिलने के कारण आप की चूड़ी टूट गयी और चुभने की वजहसे आप के हाथ से खून निकल गया, मै जानती हू की खून निकले तो बहुत दुखता है मम्मी जानवर को मारने से इन्सान नही बना सकते ऐसा होता तो मै इन्सान कितने साल पहले ही बन गई होती हाँ मारने पीटने से रटाया जा सकता है पर पढाया नही

मम्मी एक बात कहूं - गुस्सा तो नही होंगी - प्लीज़ इस लैटर पर स्टार दीजियेगा ना, मुझे कभी नही मिला - नही स्टार जितना अच्छा लैटर तो नही लिखा है पर एक स्मायली ही दे दीजियेगा

आप की
डफर

१८ दिन २९ आत्महत्या - ये २०१० की शुरुआत है ...............

Wednesday 13 January 2010

असमंजस्य

माँ नमस्कार,
कैसी है आप?
और
मै वैसी ही हू जैसी जन्म के समय थी डरी सहमी हर साँस के लिए संघर्ष करती
माँ आज मेरी नौकरी चली गयी, ऐसा लगा मानो जीने की आखिरी आस टूट गयी
सरकार कहती है मैं गलत काम करती हू लोगो को भ्रमित करती हू मेरे काम से समाज कलंकित होता है ।
माँ ज्ञानी व बुद्धिजीवी लोग कहते है तो सही ही कहते होगे पर ये समझ नही आ रहा है, मैं तो उस संगीत पर ही ताल मिलाती थी जिन पर सम्मानित अदाकारा थिरकती है और वो भी केवल परदे पर ही नही ज्ञानी व बुद्धिजीवी के कार्यक्रमों में भी
फिर मेरे परिवार की ही रोटी क्यों छिनी ? ये सम्मानित अदाकारा भी होटलों मे थिरकती है जिस के लिए इन्हें १ से २ करोड़ मिलते है एक रात के (मुझे तो महीने के २ हजार मिलते थे) माँ इनके होटल मे थिरकने से लोगो भ्रमित नही होते है?
माँ अदाकारा का सहारा लेके मैं अपने पाप से नही बचने की कोशिश कर रही हू बस असमंजस्य में हू की एक सा कम करने से सिर्फ मुझे क्यों सजा ? मैं तो मज़बूरी मे ताल से ताल मिलाती थी। २ हजार मे खोली (एक छोटा सा कमरा) का भाडा, खाना, बच्चो के कपडे, इनकी दवाई ……. इनकी कौंनसी मज़बूरी मेरी मज़बूरी से बड़ी है की इन्हें थिरकने की आज़ादी है और मुझ गरीब को रोटी कमाने की भी आज़ादी नही?
सरकार ने समाज की रक्षा के लिए नौकरी छीन ली पर कुछ सोचा हम अब करेंगे क्या या हम भी किसानो की तरह आत्महत्या करना शुरू करदे?
१०० दिन के काम देने की बात हो रही है वो भी गाँवो में, चलो काम न होने के कारण शहर आये थे अब वापस गाँवो में चले
माँ ये हमे इतना कितना वेतन दे देंगे की १०० दिन काम कर के हम ३६५ दिन जी लेंगे?
माँ आ के मुझे उपर ले जाओ बड़ी याद आ रही है
आप की
गरीबी