शंकर
Monday 15 November 2010
देंगे ना?
शंकर
Friday 5 November 2010
दिवाली
कल्पनाओ की उड़ान है दिवाली।।
क्षमताओ का विश्लेषण है दिवाली।।
उम्मीदों की किरण है दिवाली।
बदमाशी का मैदान है दिवाली।।
अपनों का मिलन है दिवाली।।।
Tuesday 12 October 2010
कौन
गुड नाईट अददु
आदित्य सो रहें हो
हाँ
कब तक सोगे ?
ओह बाउजी सोने दो ना क्यों नींद खराब कर रहें हो ।
अच्छा आप की नींद खराब हो रही है यहाँ हमारा बलिदान व्यर्थ हो रहा है।
हद है, तमीज़ से बात कर रहा हूँ तो सर पे चढ़ रहें हो।
मम्मी भी किसी को भी नौकर रख लेती है।
सुनो अगर रूम से अभी नही गये तो मै अभी के अभी काम से निकाल बाहर करूंगा ।फिर चाहें कितना भी रो नही रखूंगा, समझ जाओ और रूम से बाहर निकलो और दरवाज़ा बंद कर के जाना।
आदित्य कौन सा दरवाज़ा? ये लकड़ी का दरवाज़ा तो मै बंद करदूंगा पर तुम्हारे मस्तिष्क का दरवाज़ा कौन खोलेगा?
यही प्रॉब्लम है तुम नौकरों के साथ इज्ज़त दे दी तो हज़म नही हो रही है।
आदित्य मै नौकर नही हू मै चौरसिया हूँ व भारतीय हर किसी से तमीज़ से ही बात करते है,हम अँगरेज़ नही है जो छोटा बड़ा करे।
ओये नौकर का नाम नही होता उसे नौकर ही कहते है हिंदी समझ नही आ रही हो तो सुन सर्वेंट, अब गले ना पड़।
आदित्य तुम्हे अपने शब्द स्वयं सुनाई नही देते,सभ्य समाज के हो तो भाषा पर नियंत्रण रखो। रही नौकर की बात तो ये स्पष्ट कर दू कोई तुम्हारा नौकर नही है वो तुम्हारे सहायक है इसलिए क्यों की तुम स्वयं काम करने में सक्षम नही हो,और मै नौकर नही स्वतंत्रता सेनानी हूँ।
क्या
क्या हुआ आदित्य पहली बार ये शब्द सुना?
नही कई बार भाषणों मै सुना है और कई बार पार्टियों मै भी यूज़ कीया है,यार तुम वो नही हो सकते।
क्या नही हो सकता आदित्य
वही जो तुम ने कहा
आदित्य मै स्वतंत्रता सेनानी क्यों नहीं हो सकता और तुम यदि नहीं मानो तो मुझे कोई फरक नहीं पड़ता क्यों की मुझे किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।
वो बात नही है पर तुम्हारा नाम कभी सुना भी तो नही।
आदित्य तो मत मानो वैसे तुम ने कितने स्वतंत्रता सेनानियो के नाम सुने या पढ़े है?
ह्म्म्म ४-५
शाबाश
नही अराऊंड १०-१५ बट नोट श्युर
अच्छा तो तुम्हे लगता है २०० साल की गुलामी में सिर्फ १०-१५ ही स्वतंत्रता सेनानी थे,आज़ादी कोई पदक नही थी जो चंद लोग गये और जीत कर ले आये।
अरे भड़क क्यों रहे हो?
नही आदित्य भड़क नही रहा हूँ बस हास्य पूर्ण लगता है की आज़ाद युवा में बस इतनी समझ है की किसी ने कुछ कह दिया और उसी को मान लिया।
अरे जो देखेगे वही तो मानेगे।
आदित्य मस्तिष्क जैसी चीज़ इश्वर ने हमे केवल रखने के लिए नही दी है।
क्या
कुछ नही
नही अब जो बोलना है बोल दो ,नींद तो खराब कर ही दी।
बस यूं ही धरती पे आज़ाद भारत को देखने आया था पर अब अफ़सोस हो रहा की क्यों आया।
तुम लोग इतना अफ़सोस क्यों करते हो ,हर समय रोना रोना।
आदित्य किस बात पर खुश हूँ की लाखो शहीदों ने जिन्हें निकालने के लिये अपना कण कण अर्पण कर दिया आज वो फिर मेरी धरती पर अपनी महारानी का सन्देश सुना के हमारे बलिदान पर सवाल उठा रहें है। चलो हमने जो क्या उसे छोड़ भी दे फिर भी आप सब को आत्मग्लानी क्यों नही हो रही है की आज़ाद भारत राष्ट्रमण्डल खेलो मै खेल रहा है?
पर आत्मग्लानी क्यों हो?
आदित्य राष्ट्रमण्डल खेल १९३० में हेमिल्टन शहर, ओंटेरियो, कनाडा में आयोजित किए गए और इसमें ११ देशों के ४०० खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। तब से हर चार वर्ष में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनका आयोजन नहीं किया गया था। इन खेलों के अनेक नाम हैं जैसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स, फ्रेंडली गेम्स और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स । वर्ष १९७८ से इन्हें सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स या राष्ट्रमंडल खेल कहा जाता है। आज जब हम आज़ाद है फिर हमे इन खेलो में क्यों हिस्सा लेना चहिये हम किसी के अधीन नही है जो उनके गुलामो की पंक्ति मै खड़े रहें उनकी रानी का सन्देश सुने।
उफ़ क्यों भाग ना ले हम कुछ ना कमाये $१८०० का खेल हम ने $७०,००० का करवा दिया,पहले गोरो ने नोचा अब हमारी बारी है।
अददु उठो सुबह होगयी
अंग्रेजो को शहीदों ने भगाया और इन्हें कौन भगायेगा ..........
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Saturday 2 October 2010
आज नहीं तो कल
मैं भी मोक्ष प्राप्त करूंगा।
इस जीवन रूपी दुनिया को छोड़,
कहीं दूर चला जाऊंगा।
आज नहीं तो कल,
मैं भी क्षितिज पार करूंगा।
विवेक की मशाल जला,
परमात्मा में मिल जाऊंगा।
आज नहीं तो कल ,
मैं भी पूजा जाऊंगा।
पत्थर की मूरत बना,
कहीं कोने में खड़ा कर दिया जाऊंगा।
आज नहीं तो कल.....
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Sunday 15 August 2010
संकल्प
सलोनी और सारे बच्चों ने अपने-अपने इश्वर को याद किया और उस बोतल को खोला। एक दम से काला धुआं चारों ओर फैल गया सब बच्चे चारों ओर भागे किसी ने कहा मां बचाओ तो किसी ने कहा अम्मी बचाओ और किसी ने कहा बेबे मैंनू बचा। बच्चे चिल्लाते हुए भाग रहे थे की एकदम से काला धुआं एक छोटे से बच्चे में बदल गया। सलोनी ने कहा अरे यहां सब आओ ये तो जिन्न है ये बच्चों का दोस्त है। सब धीरे-धीरे सहमे से आए - सब में हल्का सा डर था लेकिन कुछ समय पश्चात् सब उसके पास आ गये,किसी को अब उससे डर नहीं लग रहा था।
सलोनी ने उस बोतल से निकले बच्चे से पूछा "तुम्हारा नाम क्या है ?
"मैं सत्य हूं।
सलोनी ने फिर पूछा,तुम कहां से आए हो?
वह बच्चा रो दिया, सलोनी ने कहा, " तुम रोओ मत, नहीं बताना चाहते हो तो मत बताओ लेकिन रोओ मत।
मैं रो इसिलए रहा हूं कि मेरे देश वाले मुझसे पूछ रहें हैं कि मैं कौन हूं अरे मैं भारत का हूं यह देश मेरा है। यहां के लोग केवल सत्य बोलते थे। विश्व में सिर्फ एक यही देश था जिस देश में सब शांति और भाईचारे से रहते थे। क्योंकि मैं यहां पर रहता था। सत्य। लेकिन व्यक्तियों के स्वार्थ ने मुझे इस बोतल में बंद कर दिया था उसके बाद हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख आदि धर्मों का जन्म हुआ, उससे पहले यहां मनुष्य ही रहता था। इन सबके जन्म के बाद से ही शोषण, दंगे, खून खराबा शुरू हो गया। अब मैं आजाद हूं। मैं सत्य हूं। मैं हर बच्चे, जवान, ब़ूढे में मिल जाऊंगा और फिर से भारत को महान बनाऊंगा।
फिर सत्य -सत्य को फैलाने के लिए चल दिया। सलोनी और सब बच्चे शांत खड़े रहे। कुछ समय उपरांत सलोनी ने कहा अरे हम सब तो एक हैं और रहेंगे। दूर से सत्य ने देखा और सोचा मेरा अस्तित्व खत्म नहीं हुआ है मैं आज भी अपने देश में सत्य फैला सकता हूं। सिर्फ संकल्प की आवश्यकता है। सलोनी औरसारे बच्चे सत्य के साथ हैं और हम .............
चित्र www.
Friday 6 August 2010
प्रदर्शनी
चित्र www.
Sunday 25 July 2010
चरित्रवान
बेटा तुम्हारा चरित्र कहां है दिखाई नहीं दे रहा?
बेटा मुस्करा कर बोला वो तो कब का खो गया।
कैसे तुम्हारी इतनी मूल्यवान वस्तु खो गई?
और तुमने बताया भी नहीं ,बेटा फिर मुस्कुराया।
हां जब खो गई थी तो मुझे भी अफसोस हुआ था।
मगर जब ज्ञात हुआ वस्तु खोई है तो गम लुप्त हो गया।
वैसे भी दादी ही तो कहती हैं वस्तु का मोह नहीं होना चाहिए।
मगर बेटा चरित्र आजकल मिलता कहां है।
ना मिले मुझे चाहिए भी नहीं उसको लादने से मेरी लुक खराब होती है।
जीवन जीने में भी तकलीफ होती है ,फैशन में भी तो नहीं है चरित्र रखना।
बेटा हमारी खानदानी धरोहर थी।
चाचा मगर किस काम की थी।
जिसे गरीब भी न रख सके, रोटी भी न आ सके।
जिसे रखने पर सब दया का भाव दिखाते हैं।
बेचारा चरित्रवान कहकर पुकारते हैं।
Friday 25 June 2010
मेरा भारत महान ________ (है / था)
पूजा - समझ नही आता तुम्हारे दोस्त कब घंटी बजाना सीखेंगे।चिल्ला रहें है गंवारो की तरह, अरे रिटायर्ड आदमी घर पर नही होगा तो क्या तुम्हारी तरह सुबह - सुबह दुसरो के दरवाजे पर होगा।
सत्यनारायणजी - मिश्रा साहब घर पर ही हूँ - आजायें।
पूजा - अब चाय बनाओ, अरे इतनी महंगाई है और इतने काम होते है आ गायें सत्यनारायणजी करते हुए।
मिश्रा - नमस्कार भाभीजी, मैंने कहा नमस्कार!
पूजा - नमस्कारजी!
मिश्रा - क्या बात है आज भाभी उखड़ी हुई लग रही है सत्यनारायण लडे क्या?
पूजा - नही- नही, बस आप का ही जिक्र चल रहा था की मिश्राजी शाम को भी क्यों नही आते?
मिश्रा - ओह.... क्षमा चाहूंगा.... क्या करूँ भाभी अब चलने में तकलीफ होती है, आज से रोज़ आऊँगा - खुश!!
सत्यनारायण - चाय बना देती!
मिश्रा - यही बात बुरी लगती है , तुम भाभीजी को चैन से बैठने नहीं देते हो, भाभीजी चाय मत बनाईये - मैंने आज से चाय पीनी छोड़ दी है
सत्यनारायण - क्यों मिश्राजी चाय से क्या नाराज़गी?
मिश्रा - नही मैंने अब नाराज़ होना छोड़ दिया है बस अब पानी के संग रोटी खाउगा आखरी साँस तक।
सत्यनारायण - मगर क्यों मिश्राजी?
मिश्रा - महंगाई को देखिये (गैस ३५ रुपये बढ़ गयी, पेट्रोल 3. रूपये ७३ पैसे , डीजल २ रूपये और केरोसीन ३ रुपये ) जंगली बेल की तरह बढती जा रही है।
पूजा - भाई साहब निराश मत होईये जल्द ही सब ठीक हो जयेगा आखिरकार मेरा भारत महान है।
मिश्रा - पता नही महान है या था मुझे तो सिर्फ अंधकार दिख रहा है हर चीज़ नीलाम होते दिख रही है । अब तो सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम तय करने की सरकारी व्यवस्था को ही खतम कर दिया अब महंगाई कहा से कम होगी - हाँ गरीब जरुर कम हो जायेंगे ।
सत्यनारायण- ऐसा क्यों सोचते हो?
मिश्रा - गलत हूँ तो बोलिये हर जगह हाहाकार मचा है और सरकार कहती है हम मजबूर है , किस से?? खुद की गलत नीतियों से कुछ प्रतिशित लोगो को दिखा के कहते है हम तरक्की कर रहें है। अरे भारत की राजधानी में ८ से १० घंटे बिजली जाती है तो गाँव में क्या हाल होगा - पीने के पानी के लिए खून हो रहें है और सरकार कहती है प्रगति हो रही है।
आज शक्कर ४० रूपये बिक रही है तो मोबाइल की सिम मुफ्त में बिक रही है।
६५ रुपये में दाल बिकती है तो ६० पैसे मै कॉल दर बिकती है ।
सब्जी सड़क पर बिक रही है और चप्पल ऐ. सी. दुकानों में ।
१२ % पर शिक्षा का लोन मिलता है पर कार लोन ५% पर मिल जाता है।
पूजा -हमारे देश में लोकतंत्र है, सरकार को जनता के सवालों का जवाब देना ही पड़ेगा।
मिश्रा - कैसी बात कर रही है, आप को अब भी लगता है किसी सवाल का जवाब मिलेगा। २५ सालो से इंसाफ मांग रहें है और उन्हें इंसाफ की जगह भीख मिली।
सत्यनारायण- ऐसा नही है १० लाख मिलेंगे
मिश्रा - १० लाख!! २५ सालो से हिसाब लगा के देखिये - ३३३३.३० रूपये महिना ही पड़ा है, कोई कुबेर का खज़ाना नही दे दिया है। वो भी २५ सालो बाद वादा किया गया है। वो भी इसलिए क्योंकि इनके देशप्रेमी ब्रांड के लोगो ने ही भगाया था जिसने २५ हजार लोगो को मारा था लाखो लोग तो अभी भी बीमारी से पीड़ित है। जब की उनके देश में एक आदमी ने ५ हजार लोगो को मारा तो उन्होंने दो देशो को खत्म कर दिया और अभी भी तलाश जारी है और हम ने अपने विमान में २५ हजार लोगो के कातिल को रवाना कर दिया और ये भी कह दिया की आइयेगा जरुर नाम बदल - वर्ना डोव कंपनी कैसे वापस भरत में पैर रख रही है - बिना इन सब की मिली भगत के ?
सत्यनारायण- देश को उधम सिंहजी की जरुरत है ।
मिश्रा - मेरे कवी मित्र (तरुणजी) भी यही कहते है पर उधम सिंहजी मारेगा किसे जिसने मारा या जिसने भगाया ?
सत्यनारायण- इस सवाल का तो उत्तर मिलना चाहिये ही?
मिश्रा - देखिये कब मिलता है २५ साल तो होगये और कितने साल व किस पीढी को उत्तर मिलेगा, इंतजार करना पड़ेगा - पर जिस दिन भी उत्तर मिला हर घर में उधम सिंहजी का जन्म होगा ।
Saturday 19 June 2010
दीवार पे लटकी तस्वीर
क्यों मुझे अहसास कराती है अपनी भूलों का।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मुझे विचलित करती है,
पुरानी हर बातों को ताजा कर देती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने मुझे क्यों प्रश्नजाल में फंसा देती है,
उत्तर कहने के पश्चात भी एक नया प्रश्न उजागर कर देती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मेरा ध्यान खींच लेती है,
बीती हुई बातें शब्द सहित बता देती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मुझे भयभीत कर देती है,
बच्चों को झूठी कहानी कहने पर विवश कर देती है।।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मुझे भूत से भविष्य की ओर ले जाती है,
इस तस्वीर में मुझे अपनी तस्वीर क्यों नजर आती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Sunday 13 June 2010
रिजेक्ट
जब सब को लगा पापा और मम्मी ध्यान नही दे रहें है या ये कहे स्वयं ही खोये हुए है तो बुआजी ने चिर परिचत अंदाज़ मे रोना शुरू कर दिया और २७ सालो से बलि का बकरा बनती आ रही माँ को ताने मारना शुरू कर दिया। उमा की ही गलती है उसने ही बच्चो का ठीक से लालन पालन नही कीया, मेरी फूल सी बच्ची पर थोडा सा भी ध्यान रखा होता तो आज रिजेक्ट नही होती, बेचारी, सातवी बार लड़के वालो ने मना कीया है। कितना बुरा लग रहा होगा, काश उमा मे थोड़ी सी अक्ल होती, अरे अब लड़की तुम पर चली गयी तो थोडा केयर कर लो, तुम्हारा वाला जमाना चला गया - की काली है फिर भी शादी हो गयी। वैसे होता तो पहले भी नही था, पर छोड़ो।इसके कारण मेरी बच्ची की ज़िन्दगी बर्बाद हो रही है कौन करेगा इससे शादी और करेगा भी तो कितनी बार ना सुनने के बाद।उमा रो रो के कमजोरी हो रही है और तू बुत बनी खड़ी है, चाय ही पिला दे मेरे भाई और हम सब को।
माँ - जी
बुआजी - देख हर चीज़ बतानी पड़ती है।हे राम इस का क्या करा जाये, कुछ नही आया अभी तक ,चलो शादी से पहले कुछ नही सीखा पर अब तो सीख लो, वही बात है जब माँ को ही कुछ नही आता तो बच्चो से क्या उम्मीद करे - गोरी भी नही और संस्कार भी नही, अब तो चमत्कार ही हो तो बात बने।
राहुल - दीदी पे रिजेक्ट का टेग ना लगाये. गोरी का क्या मतलब?? जैसे भारतीय होते है वेसी ही तो होगी या फिर गोरे होने के लिये फैर की बोतले पीले। हद ही हो रही है सब ऐसे कह रहें है जैसे लड़के ह्रतिक रोशन हो एक बार अपने लडको को तो देख लो। गोरी, लम्बी चाहिये, अरे शादी के बाद मोडलिंग करवानी है। मेरी बहन की शादी हो जायेगी किसी को चिंता की जरुरत नही है।
शरद चाचा - अरे मेरे युवराज तेरी दीदी को कोई कुछ नही कह रहा है,बस बात कर रहें है, आखिरकार हमारी भी बच्ची है, क्यों बिटिया बोलो, कुछ बोलना है तो बोलो, नही बोलना, कोई बात नही, बिटिया सब जानती है। सब शांत रहो एक और लड़का है उसे कल अपनी बिटिया को दिखा देते है शायद वो हाँ कह दे वर्ना और लडको को दिखायेंगे, कोई तो हमारी कल्लो परी को हाँ कर ही देगा। अब इतनी भी काली नही है।
राजा चाचा - हाँ इतनी काली नही है ########
प्रफुल चाचा - ########
शरद चाचा -######
ममता बुआ -#######
सब खुद को महत्वपूर्ण सदस्य बताने मे व्यस्त हो गये है और मैं स्वयं में। अभी मेरी स्थिति प्रधानमंत्री जैसी ही है ना कुछ बोल सकती हूँ ना कुछ कर सकती हूँ क्यों की हाई कमांड (पापाजी) बोलने की स्थिति मे नही थे और उन्हें सब को ले कर परिवार (सरकार) भी चलाना था ।
वर्ना ममता बुआजी या शरद चाचा अलग होने की धमकी दे देगे तो राहुल भाई के करियर (पे जो सब ने खर्चा कीया है वो वापस ले लिया तो) पर अल्प विराम लग जायेगा !
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Saturday 8 May 2010
"क" से "किताब"
रिचा - माँ अभी प्रेस करती हू, पर मुझे प्रेस नही ज्वाइन करनी है।
क्या प्रेस नही ज्वाइन करनी ?
रिचा - जी हाँ` मैं पत्रकार नहीं बनना चाहती।
क्यों इतने संघर्ष के बाद तो सपना सच होता दिख रहा है।
रिचा - माँ सपने और हकीकत मे अंतर होता हैं।
मेरी बेटी ऐसा मत कह, मैं तुझे अपने पैरो पर खड़ा देखना चाहती हूँ।
रिचा - मैं पत्रकार बन भी गयी तो इस का अर्थ ये तो नहीं की मुझे आज़ाद ज़मी मिल जायेगी, मुझे निर्णय लेने की अनुमति मिल जायेगी।मुझे यकीन है जिस दिन मैंने निर्णय लेने का सोचा भी तो मुझे निरुपमा की तरह लटका दिया जाएगा।और कहा जाएगा इस ने नारी हो के निर्णय लेने जैसा जघन्य अपराध कीया है।
रिचा तू प्रेम विवाह का सोच रही है?
रिचा - माँ प्रश्न प्रेम विवाह का नहीं, प्र्श्न अपना निर्णय स्यंव लेने की आजादी का है।
रिचा होगा वही जो हम चाहेंगे।
रिचा - मैं जानती हूँ मुझे मत देने का अधिकार है निर्णय लेने का नहीं।मुझे बिलकुल भ्रम नहीं है की मुझे शिक्षा ज्ञान के लिये नही प्रणाम पत्र के लिये दी जा रही है, जिस से हम आधुनिक कहलायेंगे और मेरी शादी भी हो जायेगी।
तुझे लड़के की तरह रखा और तू ऐसे कह रही है।
रिचा - ये ऋण तो जीवन भर नहीं उतार सकती, यदि मुझ मे और भाई मे अंतर नही है तो फिर मेरे लिये अहसान का भाव क्यों है?
की लड़की होते हुए भी हम पड़ा रहे है, हम कितने महान है।
माँ यहाँ इच्छा, शिक्षा, स्वतंत्रता, निर्णय लेने की आज़ादी नहीं है। मूल लक्ष्य तो वही है ना पढ़ा लिखा के शादी करा दो। जो चंद मुझ जैसी भाग्यशाली लडकियों को पढाया जा रहा है, वो भी मात्र शादी के लिये वरना "क" से "किताब" भी नहीं पढाया जाता।
रिचा - माँ से मम्मी, मम्मी से माँम कहलवाने से, सलवार से जींस, जींस से स्कर्ट पहनवाने से कोई विकसित नहीं हो जाता। कहने का अर्थ सिर्फ इतना है - मुझे निर्णय लेने की स्वतंत्रता दीजिये, मुझ पर विश्वास कीजिये मैं सही निर्णय ले सकती हूँ और क्षितिज को छू सकती हूँ।
पापा - चुप, बिलकुल चुप - माँ को हैप्पी मदर्स डे कहो, ठीक से पढो पत्रकार बनो और शादी करो वरना प्रश्नों का अंत करना हमे भी आता है।
चित्र www.google.com से लिया गया है।